Q) CKD क्या होता है?
A) मानव शरीर में सामान्यतः २ गुर्दे,पीठ की तरफ, रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर होते हैं। जिनका प्रमुख कार्य शरीर जनित विभिन्न अपशिष्ट पदार्थों को मूत्र द्वारा बाहर निकालना होता है। गुर्दे की संरचना और कार्यप्रणाली में आयी कमी जो ३ महीने तक बनी रहे उसे CKD (क्रोनिक किडनी डिसीज) कहते हैं। भारत में करीब १३ से १५ प्रतिशत लोगों में यह पायी जाती है।
Q) इसके क्या प्रमुख कारण हैं?
इसके प्रमुख कारण डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, गुर्दे का इन्फेक्शन, गुर्दे की पथरी, अत्यधिक दर्द निवारक दवाओं का सेवन तथा गुर्दे की अनुवांशिक बीमारियां इत्यादि होते हैं।
Q) इसके लक्षण क्या होते हैं?
A) इसके प्रमुख लक्षण सिर में और शरीर में दर्द, पेशाब में जलन व दर्द, पेशाब की मात्रा कम हो जाता, पेशाब का रंग गाढ़ा या लाल हो जाना,भूख ना लगना, उल्टी हो जाना या उल्टी जैसा लगना इत्यादि होते हैं। खून की जांच और अल्ट्रासाउंड से इस बीमारी की पुष्टि होती है।
Q) ESRD किसे कहते हैं?
A) ESRD मतलब एंड स्टेज रीनल डिसीज होता है। इस अवस्था में गुर्दे पूरी तरह से काम करना बंद कर देते हैं, जिसके फलस्वरूप शरीर में अपशिष्ट पदार्थ और पानी की अधिकता हो जाती है और चेहरे और शरीर में सूजन आ जाती है, फेफड़ों में इसका प्रभाव पड़ने से सांस लेने में तकलीफ होती है।यह एक इमरजेंसी होती है और मरीज को रीनल रिप्लेसमेंट थेरेपी की आवश्यकता होती है।
Q) रीनल रिप्लेसमेंट थेरेपी में क्या होता है?
A) इसमें मुखयत: दो पद्धति होती है १) डायलिसिस २) गुर्दा प्रत्यारोपण। डायलिसिस की दो विधियां हीमोडायलिसिस और पेरीटोनियल डायलिसिस होती हैं जिसमें कृतिम विधि द्वारा शरीर से अपशिष्ट पदार्थ और अतिरिक्त पानी शरीर से बाहर निकाला जाता है। हीमोडायलिसिस गर्दन या पैर में एक छोटी सी नली डालकर या फिसटुला द्वारा की जाती है। पेरीटोनियल डायलिसिस पेट में एक छोटी सी नली डालकर की जाती है।
Q) फिसटुला की आवश्यकता कब होती है?
A) ऐसे ESRD के मरीज जिन्हें नियमित डायलिसिस की आवश्यकता होती है, उन्हें फिसटुला की आवश्यकता होती है क्योंकि नली को अधिक दिनों तक प्रयोग नहीं कर सकते हैं, उसमें इन्फेक्शन का खतरा रहता है।फिसटुला लम्बे समय तक नियमित रूप से प्रयोग किया जाता है। फिसटूला शल्य क्रिया द्वारा बनाया जाता है और बनने के ३ से ४ सप्ताह बाद इसे डायलिसिस के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
Q) गुर्दा प्रत्यारोपण क्या होता है?
A) गुर्दा प्रत्यारोपण ESRD के मरीज के उपचार की सर्वश्रेष्ठ विधि है। ऐसे मरीज जो नियमित डायलिसिस पर हों या जिन्हें नियमित डायलिसिस की आवश्यकता हो और जिसके पास उनके परिवार से कोई गुर्दा डोनर उपलब्ध हो, उनके लिए गुर्दा प्रत्यारोपण ही सर्वश्रेष्ठ उपाय है। इसमें डोनर द्वारा दान किया हुआ गुर्दा मरीज को प्रत्यारोपित किया जाता है।
Q) गुर्दा कौन दान कर सकता है?
A) गुर्दा दान करने के लिए दाता का मरीज से माता पिता, पुत्र पुत्री, भाई बहन या पति पत्नी का सम्बन्ध होना चाहिए। दाता की उम्र १८ वर्ष से ६५ वर्ष के मध्य होनी चाहिए और गुर्दे से सम्बन्धित किसी रोग से ग्रसित नहीं होना चाहिए। इन सब तथ्यों की जांच द्वारा पुष्टि की जाती है और उपयुक्त पाए जाने पर ही दाता को स्वीकार किया जाता है।यह सुनिश्चित किया जाता है कि गुर्दा दान के बाद दाता को कोई तकलीफ न हो।
Q) क्या दाता एवं मरीज का ब्लड ग्रुप एक होना चाहिए?
A) यह जरूरी नही है। किसी भी ब्लड ग्रुप का व्यक्ति गुर्दा दान कर सकता है।
Q) गुर्दा प्रत्यारोपण की सर्जरी की क्या प्रकिया है?
A) दाता तथा मरीज दोनों की सर्जरी साथ में ही की जाती है। दाता की सर्जरी लैप्रोस्कोपिक विधि द्वारा की जाती है, गुर्दा निकालने के बाद उसे सामान्यतः मरीज के पेट के निचले हिस्से में दायी तरफ स्थापित किया जाता है।
Q) प्रत्यारोपण के बाद की क्या प्रकिया है?
A) प्रत्यारोपण के पश्चात दाता को सामान्यतः आपरेशन के दूसरे या तीसरे दिन अवकाश दे दिया जाता है। प्राप्तकर्ता को सामान्यतः पांचवें से सातवें दिन अवकाश दे दिया जाता है।
Q) जिन मरीजों को उनके परिवार से उपयुक्त गुर्दा दाता उपलब्ध नहीं हो पाता है, उनके पास और क्या विकल्प है?
A) वह अपना नाम उन संस्थानों की कैडेवरिक गुर्दा प्रत्यारोपण की सूची में अपना नाम दर्ज करा सकते हैं जहां यह सुविधा उपलब्ध हो। नाम दर्ज होने के बाद उनका क्रम आने पर वह अपना प्रत्यारोपण क्या सकते हैं।इस बीच उन्हें नियमित डायलिसिस कराने की आवश्यकता होती है।